शनिवार, 16 मार्च 2013

औरतों के प्रश्न

औरतों के प्रश्न करते ही
हिल उठती हैं बुनियादें परिवारों की
चरमरा उठता है समाज का ढाँचा,
या तो ज़रूरत से ज़्यादा
विध्वंसक हैं स्त्री के प्रश्न
या कहीं अधिक खोखली और कमज़ोर है
नींव घर-परिवार और समाज की,

तो क्या करें?
प्रश्न उठाना छोड़ दें,
या तोड़ दें उन रवायतों को
जो उठ खड़ी होती हैं हर बार
औरतों के विरुद्ध
उनके अधिकारों के प्रश्न पर,

या कर लें समझौता उस व्यवस्था से
जो अपनी ही आधी आबादी के प्रति
अपनाती है दोहरा रवैया,
देकर उसे समाज में दोयम दर्ज़ा
छीन लेती है
प्रश्न करने का अधिकार।