बुधवार, 20 जनवरी 2010

विश्वास

जब-जब तुमने कहा
"तुम मेरी हो"
मुझे लगा
मैं चीज़ हूँ कोई

जब-जब तुमने कहा
"मैं तुम्हारा हूँ"
मैंने महसूस किया
एहसान कर रहे हो तुम

और जब तुमने कहा
"हम बने हैं एक-दूजे के लिये"
मुझे ये प्यार नहीं
व्यापार लगा

इतने बरस बाद भी
मुझे तुम्हारे प्यार पर
विश्वास क्यों नहीं?

10 टिप्‍पणियां:

  1. 'मुक्ति' जी आदाब
    ये अविश्वास ही फासलों का कारण बनता है
    अपना एक शेर हाज़िर कर रहा हूं-

    शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी
    बुनियाद तो यकीन है, रिश्ता कोई भी हो
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  2. प्यार तो विश्वास की ही नींव पर खड़ा होता है...जाने क्यूँ फिर!!!!

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  3. शाश्वत सनातन संशय भाव -किन्तु सृष्टि फिर भी अनवरत प्रवाहमयी है -कौन है छलना ? प्रक्रति या पुरुष ?

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  4. Ji aise to head bhi aapka aaur tail bhi.. jeevan aise nahin chalta vishwaas par dunia kayam hai..
    Vasant Panchmi ki shubhkamnayen.
    Jai Hind...

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  5. अभी तक नहीं लगते हुए भी आज क्यों लगा कि यह बात बेमन की कर गयीं आप !
    यह अविश्वास क्यों है आपको ! ऐसा क्षण निरन्तर आता रहा और निरन्तर अविश्वास जमा रहा तो दोष किसका !
    विचार ठहर गया था मन में ! और प्यार विचार से कहाँ समझ में आये !

    एक बात और पहली बार लगी कि सोच कर लिखी कविता आपने !
    अब पता नहीं !

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  6. आपकी कविता को संवाद / जिरह की कविता की कोटि
    में रखना चाहूँगा ... यदि ऐसा है तो कविता सुन्दर है ! आभार ,,,

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  7. kayaa visheaas ki kasauti
    bs yaheeN tk simit hai...!!
    vishwaas nahi hota..

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  8. jb pyar ek trfa ho to ye avishvas khi na khi bich me aa hi jata hai mukti ji,ek orat jb sb kuch dekr v bhut thoda pati hai to...baras nhi sadiyo bad v yhi khegi.achi lgi kavita,subhkamanaye.

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  9. मुझे ये प्यार नहीं
    व्यापार लगा
    .....

    जाने फिर भी लोग क्यों प्यार करते हैं.....

    व्यापार है या प्यार यही तो जल्दी समझ में नहीं आता...आता भी है तो दिल जल्दी मानने को तैयार नहीं होता....

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