गुरुवार, 14 जनवरी 2010

बचकाना सा एक सपना

मेरा एक सपना है
कि मैं दिल्ली की
रिंग रोड को
देख सकूँ रात को
कैसी लगती हैं
बंद दुकानें और रेस्टोरेंट
खाली सड़कें
बिना ट्रैफिक की,

बैठ जाऊँ मैं
सड़क के डिवाइडर पर
और लिखूँ
एक कविता,

मेरा यह सपना
बचकाना लग सकता है,
इसे पूरा होने में
लग सकते हैं वर्षों,
पर पूरा होगा ज़रूर,

देखना एक दिन आएगा
जब एक अकेली लड़की
शहर की सड़कों पर
रात को घूम सकेगी
बेखौफ़ होकर

13 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे सपने जल्‍द ही पूरे हों ।
    आमीन ।

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  2. सपना अच्छा है,
    देखा है तो सच्चा भी होगा,
    एक दिन!
    हम होंगे कामयाब .....

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  3. दिल्ली की सड़कों पर एक अकेली लड़की से जुड़ी असुरक्षा के मनोभावों को बखूबी उकेरा है इस माध्यम से!! बधाई.

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  4. koi sapna bachkana nhi hota hai mukti ji,ha jb ek stree ke pure vajud ko hi bachkana man liya gya hai to us ke sapne to.....achi hai kavita,badhai.

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  5. सच कहा आपने .. काश यह आश्वासन मिल जाय
    हमारे जीवन के आधे हिस्से को जो अधिकार मांग
    रहा है .. जो 'बचकाना' है वह मौलिक भी उतना ही है ..
    कविता में कविता लिखने की आरजू बनी ही रहती है ..
    यानी श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर की ओर बढ़ना .. 'thanks god ' ,
    jnu में यह निडरता है ..
    अच्छी कविता के लिए ... आभार ,,,

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  6. कविता की यह बनावट भली लगी ! अमरेन्द्र भाई का संकेत भी !
    कविता का आभार।

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  7. मुक्ति जी,
    दुआ है कि आपका सपना जल्दी पूरा हो..
    बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  8. ये बचकाना पन मूर्त रूप ले सकेगा कभी यही आशा है।

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  9. शुरु से ही आपका ब्लाग पढ़ रहा हूं जब आप मुक्ति के नाम से लिख रहीं थी। मेरे कमेंट्स् वहां दर्ज़ होंगे। सरल भाषा में स्त्री-मनोभावों, सपनों, आकांक्षाओं और विद्रोह से जुड़ी आपकी कविताएं अच्छी लगती रहीं हैं। यह सरलता और साहस बना रहेगा तो आप रिंग रोड तो क्या दुनिया के हर अंधेरे कोने को रोशन करेंगीं।

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  10. दिल्ली मे लड़कियों को ऐसे सपने देखने पर पुलिस प्रशासन और बलात्कारियो ने पाबंदी लगा रखी है मुक्ति जी आपको पता नहीं....

    ऐसे सपने न देखें..लड़को का घुमना मुश्किल है....आप लड़की होकर ऐसे सपने देखा करती है हद है आपकी हिम्मत की ....

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