गुरुवार, 8 जनवरी 2009

अनछुई कली

तुमने मेरी ठोडी को हौले से उठाकर कहा 
अनछुई कली हो तुम
मैं चौंकी
पर क्यों?
ये झूठ तो नहीं                                                                                                                                                       
तन और मन से पवित्र
मैं कली हूँ अनछुई 
और तुम भंवरे
मैं स्थिर, तुम चंचल
प्रेम की राह में दोनों बराबर
तो मैं ही अनछुई क्यों रहूँ ? 
भला बताओ 
तुम्हें अनछुआ भंवरा क्यों न कहूँ ? 

9 टिप्‍पणियां:

  1. अति उत्तम मुक्ति जी ....बहुत खूब

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  2. इज्जत, शील, मर्यादा, ममता, लज्जा आदि कितने ही ऐसे शब्द हैं, जो वर्षो से स्त्री को भरमाते आए हैं । ये शब्द और स्त्री संदर्भो में इनके प्रचालित अर्थ इस भयावह सचाई को बताते हैं कि महज चंद शब्दों की आड़ में एक बड़ी भीड़ का कितनी आसानी से शोषण किया जा सकता है । एक स्त्री व एक पुरूष विवाह से पहले या विवाह के बिना अगर संभोग कर लेते हैं, तो हमारा समाज व साहित्य बांग लगाता है कि हाय, बेचारी स्त्री का शील भंग हो गया । अब पूछिए इनसे कि ‘शील’ नामक इस सम्मान (?) से सिर्फ स्त्री को ही क्यों नवाजा गया है ? क्या पुरूष का ‘शील’ नहीं होता ?

    एक अन्य उदाहरण में जब स्त्री के साथ बलात्कार होता है तो जबरन किए जाने वाले इस कृत्य के लिए बलात्कार एकदम उपयुक्त शब्द होता है । मगर, इससे सामाजिक संप्रभुओं का मतलब हल नहीं होता । सो वे कहते हैं कि स्त्री की इज्जत लुट गई, अस्तम लुट गई । कितनी हास्यास्पद है यह अलंकृत भाषा । जैसे कि आपके घर में डाका पडे़ और बजाय डाकुओं के हंसी भी आपकी ही उड़ाई जाए । आप शर्म के मारे घर से ही न निकलें, थाने में रिपोर्ट कराने न जाएं कि सब हंसेगे आप पर । लोग संदेहपूर्ण नज़रों से देखेंगे आपको कि आपके घर में डाका पड़ा, तो गलती भी आपकी रही होगी, आप ही चरित्रहीन होंगे ।

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  3. aapki kavita anchui chali padi ,theek hai yuvayo ko desh kaal or paristhiyon ke anuroop bhi kavitayen likhni hogi taki bhavishya achcha ho

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  4. क्या फर्क पड़ता है? अक्षत या क्षत, प्रेम में यह मुद्दा ही क्यों?

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  5. sundar abhivyakti. 'anchhui kali' ke teen varsh poorey honey par badhai.

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  6. तीन वर्ष पूर्ण होने की बहुत बधाई !

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