शनिवार, 8 अप्रैल 2023

कवयित्री बीनू की कविता गुमनाम प्रेमिकाएँ

कवयित्री बीनू की कविता "गुमनाम प्रेमिकाएँ" हाल ही में इसी नाम से प्रकाशित उनके पहले "कविता-संग्रह" की प्रतिनिधि कविता है। इस कविता में वे उन प्रेमिकाओं की स्थिति की छानबीन करती हैं, जिनका प्रेम प्रकाशित नहीं होता, जो डूबकर प्रेम करती हैं, लेकिन उनके प्रेम के विषय में कोई नहीं जान पाता। उनका नाम प्रेमिकाओं की सूची में शामिल नहीं होता।  

 बीनू की कविताएँ एक अलग ही धरातल पर लिखी गयी हैं. उनमें भाव और प्रवाह के साथ ही साथ गहन अनुभूतियों का विस्तृत संसार है. ये रोमांटिक कविताएँ हैं भी और नहीं भी. भावनाओं से ओतप्रोत होते हुए भी ये कविताएँ ठोस वैचारिक समझ लिए हुए हैं. उन्हें महसूस करने के साथ ही साथ समझना भी ज़रूरी है. इसके लिए बार-बार पाठ करने की ज़रूरत है. सुधी पाठकों को यह कविता-संग्रह अवश्य ही बहुत पसंद आएगा.

इस पोस्ट में उनकी कविता का एक अंश प्रस्तुत कर रही हूँ। उनकी कविताएँ पढ़ने के लिए आप अमेज़न से कविता-संग्रह खरीद सकते हैं इसके लिए यहाँ क्लिक करें।

 

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गुमनाम प्रेमिकाएँ 

कहाँ ढूंढ़ी जानी चाहिए?

महाद्वीपों के किस किनारे पर 

पूर्वी या पश्चिमी?

अलग अलग है दोनों 

एक किनारे हैं गर्म हवाएँ 

तो दूसरी ओर ठंडी 

एक तरफ है ज्वालामुखी 

तो दूसरी तरफ बर्फ के पहाड़ 

किन जंगलों, पहाड़ों, तराई 

घाटी, खाई में? 

कहाँ?


गुम हुई प्रेमिकाएँ 

कहीं नहीं छोड़ती कोई चिह्न  

ना किताबों के वर्क पर 

न हाशिए पर 

न शब्दों में, 

न पंक्तियों के बीच 

ख़ाली जगहों में।  


किसी ने नहीं देखी इनकी सूरत, 

न सीरत, 

किसी ने नहीं सुना 

इनका रोना कैसे संभव हुआ ये 

जबकि दूसरी पृथ्वी नहीं है 

जहाँ बस जाने का अंदेशा हो 

वो अपने साथ 

क्या-क्या लेकर विलुप्त हो  

किसके महापाप! 

किसका महापुरुषत्व!



बुधवार, 22 मार्च 2023

इतनी नफ़रत कहाँ से लाते हो?

लाशों का करते हो हिसाब-किताब
हत्यारों की जाति-धर्म गिनाते हो
ये बताओ दोस्त,
इतनी नफ़रत कहाँ से लाते हो... 

अपने धर्म वालों के सौ खून माफ़
दूसरे धर्म को हिंसक बताते हो
ये बताओ दोस्त, 
ऐसा कर कैसे पाते हो?

एक ज़रा सी अफवाह सुनकर 
करते हो हत्याएँ सरेआम 
ऐसा करके दोस्त, 

सोमवार, 18 मार्च 2019

फरवरी की बारिश

भयभीत करता है फरवरी के महीने में
टीन की छतों पर गिरता बारिश का पानी
बढ़ती जाती है जैसे-जैसे ठंडक
सिहरन होती है शरीर में
कान के पीछे झुरझुरी
थरथराते  हाथों से हटता है परदा
भीग गए होंगे बिस्तर फुटपाथ पर सोने वालों के
मेरी आँखों के कोनों पर
अटक जाती हैं दो बूँदें
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सुना है मंगल ग्रह पर हुआ करता था पानी और जीवन. पानी खत्म हुआ तो जीवन भी खत्म.
रोना कमजोरी की निशानी नही, जीवन का संकेत है

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

सरकार की सरकार

वादे किये बड़े-बड़े
विकास के अग्रदूत थे वे
समाज के एक बड़े तबके को आंदोलित किया
अपने भाषणों से

वे कहते थे सच्चे हम
न हुआ इतिहास में हम सा कोई ईमानदार
विकास की नयी-नयी परिभाषाएँ गढ़ीं
पोस्टरों पर चेप उनको
बैठ गए धरने पर

बेईमानी और भ्रष्टाचार से भन्नाए लोगों की
एक अकेली आस थे वे
गरीब-बीमार-भुखमरों के
एकमात्र विश्वास थे वे

फिर एक दिन टूट गए छन्न से लाखों दिल
और ढहढहाकर गिर गयी उम्मीदों की इमारतें
क्या करें भई ? क्या कहें ?

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

नक्कारखाना समाज

इतना खराब भी नहीं होता समय से पहले बड़े हो जाना
सोचना अपने आसपास के लोगों के बारे में
गुदगुदे गद्दों की जगह हकीकत की पथरीली ज़मीन पर सो जाना

बुरा तो वह भी नहीं कि कलम-स्लेट पकड़ने वाले नन्हे हाथ
बीनते हों कूड़े के ढेर में चमकीली चीज़ें
कन्धों पर बस्तों की जगह लादे हुए 'रात के खाने' की चिंता

बुरा तब भी नहीं होता जब आँखों में लिए बेहतर ज़िंदगी के सपने
शहर में आयी एक लड़की के हो जाएँ कई टुकड़े
या दूर किसी जंगल में हिरनी बच्चों की जगह जन रही हो ईंट-पत्थर

फुटपाथों पर सोते 'कीड़े-मकोडों' का कुचले जाना बुरा नहीं होता
रिक्शेवालों का धूप में तपते-तपते शराब में डूब जाना बुरा नहीं होता
नहीं होता बुरा फेरीवालों का पुलिसवालों से लूटा जाना
एड्स-मधुमेह-हृदयरोग की जगह मलेरिया या टी.बी से मर जाना बुरा नहीं होता

यहाँ कुछ भी बुरा नहीं होता सिवाय इसके
कि कुछ बेहद पैसे वाले लोगों ने हड़प लिए हैं कुछ कम अमीर लोगों के पैसे
या ऊँचे सरकारी दफ्तरों में हो गयी है कोई कागज़ी हेर-फेर

बहुत बुरा होता है जब होते हैं झगड़े
ऊँचे पदों पर बैठने के लिए ऊँचे-ऊँचे लोगों के बीच
कि उनलोगों के लिए सब अच्छा-अच्छा होना चाहिए

बुरा होता है सड़कों के बीच गड्ढों का होना
भले ही फुटपाथों पर बजबजाते हों नाले
बड़ी गाड़ियों के चलने के लिए ज़रूरी हैं सीधी-सपाट सड़कें

बुरा होता है चलते-चलते एलीवेटर का रुक जाना
कि कुछ लोगों को पैदल चलने की आदत नहीं होती
वे चलते हैं उनके सहारे जिन्हें वे अपने पड़ोस में बसने भी नहीं देना चाहते

बुरा होता है चले जाना बिजली का किसी बड़े मॉल में
कि आदी होते हैं वहाँ के अधिकतर लोग ठंडी चीज़ों के
लिजलिजी सड़ी गर्मी तो गरीबों की थाती हुआ करती है

बुरा है 'छोटी-छोटी बातों पर' नारे लगाना
बुरा है 'बड़े लोगों' पर उँगली उठाना
शहर 'कहीं भी' चले जायं, इजाज़त है
बुरा है गाँवों और गँवारों का शहरों में घुस जाना

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

ललटेन

तोहरै मडई
तोहर सिवान
तोहरै बाग
तोहरै दलान
तोहरै चौपाल
खेत-खलिहान

हमार का??? कुछु नाहीं
तोहर कहब
तोहरै सुनब
तोहर लिखब
तोहरै पढ़ब
तोहर समझब
तोहरै बूझब

हमार का?? कुछु नहीं
तोहर पहिनब
तोहरै ओढ़ब
तोहरै घूमब
तोहरै फिरब
तोहरै आइब
तोहरै जाइब

हमार का ?? कुछु नाहीं.
हम तोहरी
मडई कय पुअरा
जी चाहे बिछवा
चाहे त कचरा
हम कबहूँ
सवाल न उठाइब
आगी लगावा
भक् दे बर जाइब

हम तोहरी
ओसारी क ललटेन
साईं इहाँ से
कहवाँ जाइब
कान उमइठा
उठ-ब्इठ लगाइब

सुना तनी
हमै 'हवा' से बचाया
हवा लगी त
भभक उठाईब
खुद जरि चाहे
आगी लगाइब

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

नचनिया

शादी के जश्न में डूबे घराती-बराती
जब सो रहे होते हैं गहरी नींद
कुछ किशोर युवक देखते छिपकर अँधेरे कमरे में
नचनियों को, उतारते अपने मेकअप और कपड़े,

गहरी  काली रात में दिप-दिप करती ढिबरी का प्रकाश
बना देता है चीजों को हज़ार गुना रहस्यमयी
उत्सुक हैं किशोर जानने को वर्जित बातें
लुका-छिपी का खेल ही तो है जीवन सारा कम से कम अभी उनके लिए
रोमांच पैदा करती हैं छिपी हुयी बातें उनके मासूम दिलों
कौतूहल और स्फूर्ति से भरे शरीरों में

लगाते अनुमान देखकर वे नचनियों को
क्या डालकर बनाया होगा उन्होंने औरतों सा मगर बनावटी उभार?
उतारेंगे किस तरह उनको नाच खत्म होने के बाद ?
कैसे होता है नचनियों का शरीर हमसे भिन्न इतना लचीला?
नाचते क्यों हैं आखिर वे ठुमक-ठुमककर इतना अच्छा?
होते  हैं कैसे इतने सुन्दर वे भला?

जैसे-जैसे उतरता जाता है नचनियों का बाह्य आवरण 
जश्न की नाच में उन पर मुग्ध छिपकर उनको देखते किशोरों का
आकर्षण भी उतरता जाता है
कुंठाग्रस्त-मासूम-उत्सुक-कामलोलुप उनकी दृष्टि
देखना चाहती थी कुछ और- दृश्य कुछ और ही था

सिर से नोच-नोचकर नकली बालों का विग निकालता
अधेड़ उम्र का दुबला-पतला, थका-हारा, हाँफता नचनिया
उतारता एक-एक कर गहने-कपड़े पाउडर-लाली
गपर-गपरकर मुँह में ठूँसता भोजन
दूसरे हाथ से निकालकर पढ़ता है इक पर्ची,
जिसमें इस सीज़न के सट्टों की तारीखें लिखी हैं।